June 26, 2022

पाठ्यक्रम {Curriculum}

Utkarsh Education

पाठ्यक्रम 

प्रस्तावना 

शिक्षा जीवन चलने वाली प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति के व्यवहार में निरन्तर परिवर्तन व परिमार्जन होता है। यह मानव को के शिखर पर पहुंचाने वाली वह सीढ़ी है जिसके माध्यम से व्याक्ती अपने मनचाहे क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकता है। इस सफलता प्राप्ति में मुख्य रूप से शिक्षा के औपचारिक माध्यमों का योगदान होता है। औपचारिक साधनों के अन्तर्गत वे माध्यम आते है जिनका नियोजन सुनिश्चित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए व्यवस्थित ढंग से संस्थापित संस्था में किया जाता है जिन्हें विघालय कहा जाता है। किन्तु व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन की यह प्रक्रिय विघालय तथा विघालयी जीवन में ही पूर्ण नहीं हो जाती है बल्कि यह विद्यालय से बाहर भी तथा पर चलती रहती है। अतः व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन लाने वाली ये परिस्थितियाँ जो सुनियोजित ढंग से व्यवस्थित न होने पर भी उसे शिक्षा प्रदान करती है, औपचारिक माध्यम के अन्तर्गत आती हैं। इस प्रकार इन दोनों ही माध्यमों से प्राप्त शिक्षा द्वारा बालक के बहुमुखी विकास का सृजन होता है।

 वर्तमान शिक्षा व्यवस्था निम्न प्रकार है ─

शिक्षक + शिक्षार्थी + पाठ्यक्रम = शिक्षा व्यवस्था


शिक्षण क्रियाओं का आधार पाठ्‌यवस्तु या विषय-वस्तु होती है। विषय-वस्तु के सामान्य प्रारूप को पाठ्यक्रम  कहते है। शिक्षा की प्रक्रिया की धुरी पाठ्यक्रम है।


पाठ्यक्रम की अवधारणा/अर्थ व परिभाषा


पाठ्यक्रम को अंग्रेजी भाषा में 'Curriculum' कहते है, जिसकी उत्पत्ति लैटिन भाषा के 'Curricere/Currere' अथवा 'कुर्रेर' से हुई है जिसका शाब्दिक अर्थ है 'दौड़ का मैदान' (A Race Course) सीधे शब्दों में कहा जाये तो पाठ्यक्रम वह क्रम है जिसे व्यक्ति को अपने गन्तव्य स्थान पर पहुंचने के लिए पार करना होत है अर्थात् यह दौड़ के मैदान की तरह होता है जिसमें बालक को तब तक दौड़ना पड़ता है जब तक कि वह अपने लक्ष्य को न प्राप्त कर ले। विद्यालयों में शिक्षक और शिक्षार्थी द्वारा किए गए प्रयासों से किसी उद्देश्य की प्राप्ति होना ही पाठ्यक्रम कहलाता है। अतः पाठ्यक्रम वह साधन है जिसके द्वारा शिक्षा व जीवन के लक्ष्यों की प्राप्ति होती है। यह अध्ययन का निश्चित व तर्कपूर्ण क्रम है। जिसके माध्यम से शिक्षार्थी के व्यक्तित्व का विकास होता है तथा वह नवीन ज्ञान तथा अनुभव ग्राहण करता है।


शिक्षा के अर्थ के बारे में दो धारणाएं है-पहला प्रचलित अर्थ या संकुचित अर्थ व दूसरा वास्तविक या व्यापक अर्थ संकुचित अर्थ में शिक्षा केवल स्कूली शिक्षा या पुस्तकीय ज्ञान तक ही सीमित होती है तथा इस दृष्टि से पाठ्यक्रम को केवल विभिन्न विषयों के पुस्तकीय ज्ञान तक ही सीमित माना जाता है परन्तु विस्तृत अर्थ में पाठ्यक्रम के अन्तर्गत वे सभी अनुभव आ जाते हैं जिसे एक नई पीढ़ी अपनी पुरानी पीढ़ियों से प्राप्त करती है। साथ ही विद्यालय में रहते हुए शिक्षक के संरक्षण में विद्यार्थी जो भी सक्रियाएँ करता है वह सभी पाठ्यक्रम के अन्तर्गत आती है तथा इसके अतिरिक्त विभिन्न पाठ्यक्रम सहभागी क्रियाएँ भी पाठ्यक्रम का अंग होती है। अतः वर्तमान समय में पाठ्यक्रम से तात्पर्य उनके विस्तृत रूप से है।


पाठ्यक्रम को विभिन्न विद्वानों द्वारा निम्न प्रकार से परिभाषित किया गया है 一

पॉल हिरस्ट के अनुसार, 'पाठ्यक्रम ऐसी गतिविधियों का समायोजन है जिनके द्वारा छात्र जहाँ तक सम्भव हो, निश्चित परिणाम व उद्देश्यों को प्राप्त करते हैं।"


कनिंघम के अनुसार, "पाठ्यक्रम कलाकार (शिक्षक) के हाथ में एक साधन है जिससे वह अपनी सामग्री (शिक्षार्थी) को अपने आदर्श, उद्देश्य के अनुसार अपनी चित्रशाला (विद्यालय में डाल सकता है।" 


मुनरो के अनुसार, "पाठ्यक्रम सारे अनुभवों को अपने में सम्मिलित करता है जिसका प्रयोग विद्यालय द्वारा बालक को शिक्षित करने के उद्देश्य से होता है।"


माध्यमिक शिक्षा आयोग (1952-53), "पाठ्यक्रम का अर्थ केवल उन सैद्धान्तिक विषयों से नहीं है जो विद्यालयों में परम्परागत रूप से पढ़ाए जाते हैं बल्कि इसमें अनुभवों की वह सम्पूर्णता भी सम्मिलित होती है जिनको विद्यार्थी विद्यालय कक्षा पुस्तकालय प्रयोगशाला कार्यशाला, खेल के मैदान तथा शिक्षक एवं छात्रों के अनेक अनौपचारिक सम्पकों से प्राप्त करता है। इस प्रकार विद्यालय का सम्पूर्ण जीवन पाठ्यक्रम हो जाता है जो छात्रों के जीवन के सभी पक्षों को प्रभावित करता है और उनके सन्तुलित व्यक्तित्व के विकास में सहायता देता है।"


होर्नी के शब्दों में, "पाठ्यक्रम वह है जो शिक्षार्थी को पढ़ाया जाता है। वह शान्तिपूर्ण पढ़ने या चौखने से अधिक है। इसमें उद्योग, व्यवसाय, ज्ञानोपार्जन अभ्यास और क्रियाएँ शामिल है।"


फ्रॉबेल के अनुसार, "पाठ्यक्रम सम्पूर्ण मानव जाति के ज्ञान एवं अनुभव का प्रतिरूप होना चाहिए|"


पाठ्यक्रम की प्रकृति

शिक्षा जीवनपर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है, जिसके द्वारा व्यक्ति के व्यवहार में निरन्तर परिवर्तन एवं परिमार्जन होता है। व्यक्ति के व्यवहार में यह परिवर्तन अनेक माध्यमों से होते हैं, किन्तु मुख्य रूप से इन माध्यमों को दो रूपों में वर्गीकृत किया जा सकता है औपचारिक एवं अनौपचारिक । औपचारिक रूप के अन्तर्गत वे माध्यम आते है जिनका नियोजन कुछ निश्चित उद्देश्यों की पूर्ति के जो लिए व्यवस्थित ढंग से संस्थापित संस्थाओं में किया जाता है। इस प्रकार की संस्थाओं को विद्यालय कहा जाता है, किन्तु व्यक्ति के परिवर्तन की प्रक्रिया विद्यालय एवं विद्यालयी जीवन में ही पूर्ण नहीं हो माती है बल्कि वह विद्यालय से बाहर तथा जीवन भर चलती रहती है। अतः व्यक्ति के व्यवहार में होने वाले अनेक परिवर्तन विद्यालय की सीमा से बाहर की परिस्थितियों के परिणामस्वरूप होते हैं। चूंकि ऐसी परिस्थितियाँ सुनियोजित ढंग से प्रस्तुत नहीं की जाती है, अतः वे अनौपचारिक माध्यम के अन्तर्गत आती है। विद्यालय में विद्यार्थियों को जो कुछ भी कक्षा एवं कक्षा के बाहर प्रदान किया जाता है उसका एक निश्चित उद्देश्य होता है एवं उसे किसी विशेष माध्यम से ही पूरा किया जाता है। हमारी से कुछ सकल्पनायें होती है कि एक विशेष कक्षा उत्तीर्ण करने के बाद विद्यार्थी के व्यवहार में अमुक परिवर्तन आ जायेगा, परन्तु यह परिवर्तन किस प्रकार लाया जायेगा ? किसके द्वारा लाया जायेगा ? और कितना लाया जायेगा ? आदि ऐसे अनेक प्रश्न है, जिनका समाधान पाठ्यक्रम जैसे साधन से प्राप्त होता है। अतः पाठ्यक्रम का सम्बन्ध शिक्षा के औपचारिक माध्यम से है।

पाठ्यक्रम की आवश्यकता एवं महत्व


पाठ्यक्रम की आवश्यकता एवं महत्व निम्नलिखित हैं ─

1. शैक्षिक लक्ष्यों व उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक  पाठ्यक्रम से विद्यार्थी और अध्यापक द्वारा निर्धारित लक्ष्यों एवं उद्देश्यों की प्राप्ति संभव होती है। पाठ्यक्रम के अभाव में शैक्षिक प्रक्रिया प्रभावी और सार्थक नहीं हो सकती।

2. ज्ञान वृद्धि में सहायक  पाठ्यक्रम की आवश्यकता और महत्व इस बात से भी है जि यह अध्यापक और छात्रों के ज्ञान में वृद्धि करता है। पाठ्यक्रम के अध्ययन से ही अध्यापक और विद्यार्थी को समय-समय पर घटित होने वाली नवीन घटनाओं और तथ्यों की जानकारी मिलती है।

3. कुशल अध्यापकों के चयन में सहायक  पाठ्यक्रम न केवल किसी कक्षा विशेष या विषयवस्तु से संबंधित जानकारी देता है बल्कि यह भी बताता है कि किसी विषय वस्तु को पढ़ाने में किस प्रकार का अध्यापक चाहिए और उसका चयन कैसे किया जाए।

4. प्रभावी शिक्षण विधियों के चयन में सहायक  विद्यार्थियों की रुचि और उनके मानसिक स्तर के अनुरूप चयनित शिक्षण विधियों से शैक्षिक लक्ष्यों और उद्देश्यों की प्राप्ति का रास्ता सहज हो जाता है। पाठ्यक्रम की सहायता से ही इस प्रकार की शिक्षण विधियों के चुनाव में सहायता मिलती है।

5. प्रजातांत्रिक मूल्यों के विकास में सहायक  पाठ्यक्रम के माध्यम से विद्यार्थियों को | विभिन्न प्रकार की जानकारियों दी जाती हैं। इन्हीं जानकारियों के सहारे विद्यार्थियों के भावी जीवन की सफलता निर्भर है। विद्यालय में रहते हुए विद्यार्थी परस्पर समूह में रहते हैं, जिससे उनमें आपसी प्रेम-भाव सहयोग, समानता, स्वतंत्रता और न्याय आदि गुणों का विकास होता हैं।

6. शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में निरन्तरता  प्रभावी शिक्षण अधिगम प्रक्रिया की मुख्य विशेषता यही होती है कि उसमें निरन्तरता हो । पाठ्यक्रम समय-समय पर विभिन्न प्रकार की शिक्षण तकनीकों की जानकारी देता है, जिसमें शिक्षण अधिगम प्रक्रिया सुचारू और सार्थक बनती हैं।

7. सीमाओं के निर्धारण में सहायक  पाठ्यक्रम का कार्य अध्यापक और विद्यार्थियों में न केवल ज्ञान का विकास करना है बल्कि उनमें शैक्षिक कार्यों व उनको सीमाओं का निर्धारण करना भी है। पाठयक्रम अध्यापको को उनके कार्य क्षेत्र की जानकारी प्रदान करता है तथा विद्यार्थियों को भी उनके बोध स्तर एवं शैक्षिक सीमाओं का आभास करवाता है।

8. विभिन्न कौशल और अभिवृत्तियों के विकास में सहायक  पाठ्यक्रम से अध्यापक और विद्यार्थियों में विभिन्न शैक्षिक और व्यावसायिक कौशलों का विकास होता है। इससे उन्हें ज्ञान की उपयोगिता और चिन्तन प्रवृत्ति का भी बोध होता है।

9. अनुदेशन नियोजन की सुविधा  पाठ्यक्रम अध्यापको को अनुदेशन को नियोजित करने में भी सहायता करता है। अध्यापक को सामाजिक शक्तियों के साथ-साथ मानवीय विशेषताओं की जानकारी भी आवश्यक है। इसी ज्ञान के आधार पर अध्यापक अनुदेशनात्मक विधियों का चयन करके अपना शिक्षण कार्य पूरा कर पाता है।

10. पाठ्य पुस्तकों का निर्माण ─ अच्छी पाठ्य पुस्तकों का निर्माण एक कठिन कार्य है, इस कार्य में पाठ्यक्रम हमारी सहायता करता है। पाठ्यक्रम हमें यह बताता है कि किस स्तर पर किस विषय में क्या विषय सामग्री होनी चाहिए। इसी के आधार पर लेखक अच्छी पाठ्यपुस्तकों का निर्माण कर पाते हैं।

11. शिक्षण अधिगम परिस्थितियों को संगठित करने में सहायक  पाठ्यक्रम अध्यापक के साथ-साथ छात्रों को भी विभिन्न अधिगम की शैलियों की जानकारी भी प्रदान करता है, इन्हीं पौलियों के आधार पर शिक्षण कार्य सम्पन्न किया जाता है।

12. विभिन्न खोजों व आविष्कारों में सहायक  पाठयक्रम उच्च शिक्षा स्तर पर छात्रों और अध्यापको को विभिन्न प्रकार की खोजों और आविष्कारों के लिए प्रेरित करता है। ये खोजें और आविष्कार किसी भी राष्ट्र के विकास में अपना अहम् योगदान देते है।

13. सहज मूल्यांकन में सहायक  किसी भी विद्यार्थी के शैक्षिक स्तर का बोध समय-समय पर किए जाने वाले मूल्यांकन से ही होता है। पाठ्यक्रम से ही किसी भी कक्षा स्तर के विद्यार्थियों को उचित शैक्षिक स्थिति का बोध होता है, जो विद्यार्थी के उचित मार्गदर्शन में सहायक होती है।

14. तत्कालीन घटनाओं के ज्ञान में सहायक  पाठ्यक्रम का महत्व इस बात से भी हैं कि छात्रों को देश-विदेश की तत्कालीन घटनाओं की जानकारी भी प्रदान करता है जिससे छात्र अपने सामाजिक व भौतिक वातावरण को समझ पाते हैं।

15. पाठ्यक्रम और राष्ट्रीय एकता  पाठ्यक्रम राष्ट्रीय एकता को बनाये रखने में हमारी सहायता करता है। पाठ्यक्रम के माध्यम से विभिन्न क्रियाओं का संचालन करके समाज में राष्ट्रीय एकता बनाई जा सकती है। 

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